ग़म-ओ-ख़ुशी के अगर सिलसिले नहीं चलते
तो मेरे साथ कभी हौसले नहीं चलते
अना के पेड़ पे खिलते नहीं ख़ुलूस के फूल
ज़िदों के साथ कभी फ़ैसले नहीं चलते
बस इक निगाह पे उम्रें निसार होती हैं
मोहब्बतों के कभी सिलसिले नहीं चलते
हमारे क़दमों में रहते हैं रास्ते लेकिन
हमारे साथ कभी मरहले नहीं चलते
हर एक शख़्स यहाँ मीर-ए-कारवाँ ख़ुद है
इसी लिए तो यहाँ क़ाफ़िले नहीं चलते
ग़ज़ल
ग़म-ओ-ख़ुशी के अगर सिलसिले नहीं चलते
नदीम फर्रुख