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ग़म नैरंग दिखाता है हस्ती की जल्वा-नुमाई का | शाही शायरी
gham nairang dikhata hai hasti ki jalwa-numai ka

ग़ज़ल

ग़म नैरंग दिखाता है हस्ती की जल्वा-नुमाई का

क़ौसर जायसी

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ग़म नैरंग दिखाता है हस्ती की जल्वा-नुमाई का
कितने ज़मानों का हासिल है इक लम्हा तन्हाई का

तेरे नाज़ुक लब हैं गोया मौसम का मौज़ू-ए-सुख़न
गुलशन गुलशन शोहरा है शादाबी का रानाई का

अपने ग़म की फ़िक्र न की इस दुनिया की ग़म-ख़्वारी में
बरसों हम ने दस्त-ए-जुनूँ से काम लिया दानाई का

आलम के हर मंज़र को कुछ रंग नए मिल जाते हैं
किरनें सुब्ह की ले जाती हैं रूप तिरी अंगड़ाई का

साहिल ओ तूफ़ाँ के अफ़्साने रंग-ए-हक़ीक़त क्या देंगे
डूब के उभरो तो इरफ़ाँ हो दरिया की गहराई का

दिल में 'कौसर' आए कितने दौर तग़य्युर के लेकिन
नक़्श-ए-तमन्ना पर जब देखो आलम है बरनाई का