ग़म को बाहम बहम न कीजे
गर ग़म है तो ग़म का ग़म न कीजे
यक नीम-निगह है सो भी कारी
कुछ इस में से तो कम न कीजे
गो हम हैं आशिक़-ए-वफ़ादार
पर इतना भी सितम न कीजे
बे-फ़ाएदा रोइए कहाँ तक
अब जी में है चश्म नम न कीजे
ग़ैरों के पढ़ाने को मेरा वस्फ़
इस तौर से ये करम न कीजे
गो तेग़-ए-असील हैं ये अबरू
हर दम इतना भी ख़म न कीजे
गर जाम-ए-मय 'असर' लगे हाथ
फिर ख़्वाहिश-ए-जाम-ए-जम न कीजे

ग़ज़ल
ग़म को बाहम बहम न कीजे
मीर असर