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ग़म को बाहम बहम न कीजे | शाही शायरी
gham ko baham baham na kije

ग़ज़ल

ग़म को बाहम बहम न कीजे

मीर असर

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ग़म को बाहम बहम न कीजे
गर ग़म है तो ग़म का ग़म न कीजे

यक नीम-निगह है सो भी कारी
कुछ इस में से तो कम न कीजे

गो हम हैं आशिक़-ए-वफ़ादार
पर इतना भी सितम न कीजे

बे-फ़ाएदा रोइए कहाँ तक
अब जी में है चश्म नम न कीजे

ग़ैरों के पढ़ाने को मेरा वस्फ़
इस तौर से ये करम न कीजे

गो तेग़-ए-असील हैं ये अबरू
हर दम इतना भी ख़म न कीजे

गर जाम-ए-मय 'असर' लगे हाथ
फिर ख़्वाहिश-ए-जाम-ए-जम न कीजे