ग़म की ढलवान तक आए तो ख़ुशी तक पहुँचे
आदमी घाट तक आए तो नदी तक पहुँचे
इश्क़ में दिल के इलाक़े से गुज़रती है बहार
दर्द एहसास तक आए तो नमी तक पहुँचे
उफ़ ये पहरे हैं कि हैं पिछले जनम के दुश्मन
भँवरा गुल-दान तक आए तो कली तक पहुँचे
नींद में किस तरह देखेगा सहर यार मिरा
वहम के छोर तक आए तो कड़ी तक पहुँचे
किस को फ़ुर्सत है जो हर्फ़ों की हरारत समझाए
बात आसानी तक आए तो सभी तक पहुँचे
बैठे-बैठे का सफ़र सिर्फ़ है ख़्वाबों का फ़ुतूर
जिस्म दरवाज़े तक आए तो गली तक पहुँचे
ग़ज़ल
ग़म की ढलवान तक आए तो ख़ुशी तक पहुँचे
नवीन सी. चतुर्वेदी