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ग़म की चादर ओढ़ कर सोए थे क्या | शाही शायरी
gham ki chadar oDh kar soe the kya

ग़ज़ल

ग़म की चादर ओढ़ कर सोए थे क्या

फ़ारूक़ नाज़की

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ग़म की चादर ओढ़ कर सोए थे क्या
रात भर मेरे लिए रोए थे क्या

चादर-ए-इस्मत के धब्बे आप ने
रात पी कर सुब्ह-दम धोए थे क्या

मैं ने पूछा उन से इक सादा सवाल
ख़ार मेरी राह में बोए थे क्या

ढूँडते फिरते हो ख़ुद को 'नाज़ुकी'
इन्ही गलियों में कभी खोए थे क्या