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ग़म के मारों का है सहारा चाँद | शाही शायरी
gham ke maron ka hai sahaara chand

ग़ज़ल

ग़म के मारों का है सहारा चाँद

अतहर नादिर

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ग़म के मारों का है सहारा चाँद
कितना अच्छा है कितना प्यारा चाँद

ज़र्द चेहरा है चाँदनी फीकी
कहीं फ़ुर्क़त का हो न मारा चाँद

तू हर इक का है और किसी का नहीं
लोग कहते रहें हमारा चाँद

हम जहाँ जाएँ जिस तरफ़ जाएँ
साथ रहता है ये दिल-आरा चाँद

बढ़ गई और दिल की बेताबी
जाने क्या कर गया इशारा चाँद

हम तिरे पास ख़ुद चले आए
तेरी दूरी नहीं गवारा चाँद

रात-भर साथ था मगर 'नादिर'
सुब्ह-दम कर गया किनारा चाँद