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ग़म-ए-मोहब्बत है कार-फ़रमा दुआ से पहले असर से पहले | शाही शायरी
gham-e-mohabbat hai kar-farma dua se pahle asar se pahle

ग़ज़ल

ग़म-ए-मोहब्बत है कार-फ़रमा दुआ से पहले असर से पहले

वक़ार बिजनोरी

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ग़म-ए-मोहब्बत है कार-फ़रमा दुआ से पहले असर से पहले
बता रही है ये दिल की धड़कन वो आ रहे हैं ख़बर से पहले

ये किस के गेसू से माँग लाई नसीम निकहत सहर से पहले
फ़ज़ा-ए-गुलशन उदास सी थी शमीम-ए-अम्बर-असर से पहले

बजाए ख़ूँ मय झलक रही है हमारी रग रग से अब तो साक़ी
बहुत ही बे-कैफ़ ज़िंदगी थी ख़ुमार-आगीं नज़र से पहले

नज़र नज़र अक्स रू-ए-जानाँ नफ़स नफ़स बे-ख़ुदी का आलम
हिजाब यूँ दरमियाँ से उट्ठा नज़र मिली यूँ नज़र से पहले

ग़ुरूर वीरानियों पे अपनी अबस बयाबाँ को इस क़दर है
रिवाज पाया है ये तरीक़ा हक़ीक़तन मेरे घर से पहले

ये अहल-ए-वहशत का हौसला है ख़िज़ाँ पे क़ब्ज़ा है फ़स्ल-ए-गुल का
वो बढ़ के सीना-सिपर हुए हैं गुमान-ए-बर्क़-ओ-शरर से पहले

नुक़ूश-ए-सज्दा पे आज मेरे वो नक़्श-ए-पा सब्त कर रहे हैं
मिरे मुक़द्दर की यावरी का ये नक़्श उट्ठा किधर से पहले

कभी तसव्वुर में आए भी तो घनेरी ज़ुल्फ़ों को रुख़ पे डाले
हमारी क़िस्मत में शाम-ए-ग़म थी नुमूद-ए-नूर-ए-सहर से पहले

जहाँ की रंगीनियों से अब तक 'वक़ार' बिल्कुल ही बे-ख़बर थे
असीर-ए-जल्वा नज़र थी अपनी शुऊ'र-ए-ज़ौक़-ए-नज़र से पहले