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ग़म-ए-जहाँ को शर्मसार करने वाले क्या हुए | शाही शायरी
gham-e-jahan ko sharmsar karne wale kya hue

ग़ज़ल

ग़म-ए-जहाँ को शर्मसार करने वाले क्या हुए

इफ़्तिख़ार आरिफ़

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ग़म-ए-जहाँ को शर्मसार करने वाले क्या हुए
वो सारी उम्र इंतिज़ार करने वाले क्या हुए

बहम हुए बग़ैर जो गुज़र गईं वो साअ'तें
वो एक एक पल शुमार करने वाले क्या हुए

दुआ-ए-नीम-शब की रस्म कैसे ख़त्म हो गई!
वो हर्फ़-ए-जाँ पे ए'तिबार करने वाले क्या हुए

कहाँ हैं वो जो दश्त-ए-आरज़ू में ख़ाक हो गए
वो लम्हा-ए-अबद शिकार करने वाले क्या हुए

तलब के साहिलों पे जलती कश्तियाँ बताएँगी
शनावरी पे ए'तिबार करने वाले क्या हुए