ग़म-ए-जानाँ की ख़बर लाती है
कोई आवाज़ अगर आती है
जाने किस सम्त हवा की ज़ंजीर
खींच कर मुझ को लिए जाती है
कैसा आलम है कि तन्हाई भी
दर-ओ-दीवार से टकराती है
ना-गहाँ आई थी हम पर भी 'जमील'
वो क़यामत जो गुज़र जाती है
ग़ज़ल
ग़म-ए-जानाँ की ख़बर लाती है
क़मर जमील