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ग़म-ए-जानाँ की ख़बर लाती है | शाही शायरी
gham-e-jaanan ki KHabar lati hai

ग़ज़ल

ग़म-ए-जानाँ की ख़बर लाती है

क़मर जमील

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ग़म-ए-जानाँ की ख़बर लाती है
कोई आवाज़ अगर आती है

जाने किस सम्त हवा की ज़ंजीर
खींच कर मुझ को लिए जाती है

कैसा आलम है कि तन्हाई भी
दर-ओ-दीवार से टकराती है

ना-गहाँ आई थी हम पर भी 'जमील'
वो क़यामत जो गुज़र जाती है