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ग़म भी उतना नहीं कि तुम से कहें | शाही शायरी
gham bhi utna nahin ki tum se kahen

ग़ज़ल

ग़म भी उतना नहीं कि तुम से कहें

एजाज़ उबैद

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ग़म भी उतना नहीं कि तुम से कहें
और चारा नहीं कि तुम से कहें

आज हम बे-कराँ समुंदर हैं
तुम वो दरिया नहीं कि तुम से कहें

यूँ तो मरने से चैन मिलता है
ये इरादा नहीं कि तुम से कहें

नीली आँखों की चाँदनी के लिए
अब अंधेरा नहीं कि तुम से कहें

तुम अकेले नहीं रहे तो क्या
हम भी तन्हा नहीं कि तुम से कहें

अब न वो ग़म कि अपने हाथ 'उबैद'
शबनम-आसा नहीं कि तुम से कहें