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ग़म-ब-दिल शुक्र-ब-लब मस्त ओ ग़ज़ल-ख़्वाँ चलिए | शाही शायरी
gham-ba-dil shukr-ba-lab mast o ghazal-KHwan chaliye

ग़ज़ल

ग़म-ब-दिल शुक्र-ब-लब मस्त ओ ग़ज़ल-ख़्वाँ चलिए

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

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ग़म-ब-दिल शुक्र-ब-लब मस्त ओ ग़ज़ल-ख़्वाँ चलिए
जब तिलक साथ तिरे उम्र-ए-गुरेज़ाँ चलिए

रहमत-ए-हक़ से जो इस सम्त कभी राह मिले
सू-ए-जन्नत भी ब-राह-ए-रह-ए-जानाँ चलिए

नज़्र माँगे जो गुलिस्ताँ से ख़ुदा-वन्द-ए-जहाँ
साग़र-ए-मय में लिए ख़ून-ए-बहाराँ चलिए

जब सताने लगे बे-रंगी-ए-दीवार-ए-जहाँ
नक़्श करने कोई तस्वीर-ए-हसीनाँ चलिए

कुछ भी हो आईना-ए-दिल को मुसफ़्फ़ा रखिए
जो भी गुज़रे मसल-ए-ख़ुसरव-ए-दौराँ चलिए

इम्तिहाँ जब भी हो मंज़ूर जिगर-दारों का
महफ़िल-ए-यार में हम-राह-ए-रक़ीबाँ चलिए