गलियों में भटकना रह-ए-आलाम में रहना
याँ सब को है नाकामी-ए-यक-गाम में रहना
पहले तो बिखर जाना गुज़रगाहों के हमराह
फिर हसरत-ए-दीवार-ओ-दर-ओ-बाम में रहना
बाग़ात में फिरना ख़स-ओ-ख़ाशाक पहन कर
हर सिलसिला-ए-सब्ज़ के अंजाम में रहना
हर साँस में घुलना तिरी दहलीज़ की ख़ुश्बू
हर आँख का दूरी के सियह दाम में रहना
आवाज़ न आना किसी आबाद मकाँ से
हर हाथ का याँ दस्तक-ए-नाकाम में रहना
कुछ देर में खुल जाएगा बस्ती का नसीबा
कुछ देर है और सख़्ती-अय्याम में रहना
'एजाज़' बहुत दिन से है शोहरत का बुलावा
तुम हो कि वही क़रया-ए-गुमनाम में रहना

ग़ज़ल
गलियों में भटकना रह-ए-आलाम में रहना
एजाज़ गुल