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गले लगाए मुझे मेरा राज़दाँ हो जाए | शाही शायरी
gale lagae mujhe mera raazdan ho jae

ग़ज़ल

गले लगाए मुझे मेरा राज़दाँ हो जाए

आबिद मलिक

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गले लगाए मुझे मेरा राज़दाँ हो जाए
किसी तरह ये शजर मुझ पे मेहरबाँ हो जाए

सितारे झाड़ के बालों से अब ये कहता हूँ
कोई ज़मीन पे रह कर न आसमाँ हो जाए

इसी लिए तो उदासी से गुफ़्तुगू नहीं की
कहीं वो बात न बातों के दरमियाँ हो जाए

ये ज़ख़्म ऐसे नहीं हैं कि जो दिखाएँ तुम्हें
ये रंज ऐसा नहीं है कि जो बयाँ हो जाए

बुला रहा है कोई आसमाँ की खिड़की से
सो आज ख़ाक-नशीं तेरा इम्तिहाँ हो जाए