ग़ैर पर लुत्फ़ करे हम पे सितम या क़िस्मत
था नसीबों में हमारे ये सनम या क़िस्मत
यार तू यार नहीं बख़्त हैं सो उल्टे हैं
कब तलक हम ये सहें दर्द-ओ-अलम या क़िस्मत
कूचा-गर्दी से उसे शौक़ है लेकिन गाहे
इस तरफ़ को नहीं रखता वो क़दम या क़िस्मत
कूचा-ए-यार में थोड़ी सी जगह दे ऐ बख़्त
माँगता तुझ से नहीं मुल्क-ए-अजम या क़िस्मत
जान-ओ-दिल में से नहीं एक भी अब नेक-नसीब
दोनों कम-बख़्त हुए आ के बहम या क़िस्मत
'आसिफ़' अब और लगे करने तरक़्क़ी दिन रात
शामत-ए-बख़्त हुई मेरी तो कम या क़िस्मत
ग़ज़ल
ग़ैर पर लुत्फ़ करे हम पे सितम या क़िस्मत
आसिफ़ुद्दौला