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ग़ैर-मुमकिन है कि मिट जाए सनम की सूरत | शाही शायरी
ghair-mumkin hai ki miT jae sanam ki surat

ग़ज़ल

ग़ैर-मुमकिन है कि मिट जाए सनम की सूरत

वाहिद प्रेमी

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ग़ैर-मुमकिन है कि मिट जाए सनम की सूरत
दिल का ये नक़्श नहीं नक़्श-ए-क़दम की सूरत

रात बीमार पे भारी है कहीं तार-ए-नफ़स
टूट जाए न तिरे क़ौल-ओ-क़सम की सूरत

मय-कशो ख़ूब पियो इतना मगर होश रहे
जाम छलके न कभी दीदा-ए-नम की सूरत

हम सा बद-बख़्त ज़माने में कोई क्या होगा
हम को ख़ुशियाँ भी मिलीं दर्द-ओ-अलम की सूरत

कौन है जिस से हमें प्यार के दो बोल मिलें
आज के लोग हैं पत्थर के सनम की सूरत

फिक्र-ओ-एहसास की आँचों से पिघल कर 'वाहिद'
मिस्ल-ए-शमशीर हुई अपने क़लम की सूरत