गई गुज़री कहानी लग रही है
मुझे हर शय पुरानी लग रही है
वो कहता है कि फ़ानी है ये दुनिया
मुझे तो जावेदानी लग रही है
ये ज़िक्र-ए-आसमाँ कैसा कि मुझ को
ज़मीं भी आसमानी लग रही है
वो इस हुस्न-ए-तवज्जोह से मिले हैं
ये दुनिया पुर-मआनी लग रही है
ग़ज़ल दुनिया में रहता हूँ मैं 'अकबर'
ये मेरी राजधानी लग रही है
ग़ज़ल
गई गुज़री कहानी लग रही है
अकबर हमीदी