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गहरा सुकूत ज़ेहन को बेहाल कर गया | शाही शायरी
gahra sukut zehn ko behaal kar gaya

ग़ज़ल

गहरा सुकूत ज़ेहन को बेहाल कर गया

अफ़ज़ल मिनहास

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गहरा सुकूत ज़ेहन को बेहाल कर गया
सोचों के फूल फूल को पामाल कर गया

सूरज ने अपनी आँच को वापस बुला लिया
लेकिन मिरे लहू को वो सय्याल कर गया

क्या फ़ैसला दिया है अदालत ने छोड़िए
मुजरिम तो अपने जुर्म का इक़बाल कर गया

जो लोग दूर थे वो बहुत दूर हो गए
ये ताज़ा हादिसा भी गया साल कर गया

सहमे हुए हैं चारों तरफ़ रौशनी के अक्स
इक हाथ आ के सुर्ख़ कई गाल कर गया

मैं दो क़दम चला था कि ढलवान आ गई
'अफ़ज़ल' सफ़र तो मेरा बुरा हाल कर गया