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ग़फ़लत में फ़र्क़ अपनी तुझ बिन कभू न आया | शाही शायरी
ghaflat mein farq apni tujh bin kabhu na aaya

ग़ज़ल

ग़फ़लत में फ़र्क़ अपनी तुझ बिन कभू न आया

मीर मुस्तहसन ख़लीक़

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ग़फ़लत में फ़र्क़ अपनी तुझ बिन कभू न आया
हम आप के न आए जब तक कि तू न आया

साक़ी ने जाम-ए-मय तो शब पै-ब-पै दिया पर
निय्यत भरी न अपनी जब तक सुबू न आया

कोताह है निहायत दस्त-ए-दुआ हमारा
दामन असर का जा कर इक बार छू न आया

आशिक़ को तेरे कल से थी जाँ-कनी की हालत
सब देखने को आए अल्लाह तू न आया

फूँका भी तूर-ओ-वादी बाज़ ऐ 'ख़लीक़' लेकिन
अपनी शरारतों से वो शो'ला-ख़ू न आया