ग़फ़लत में फ़र्क़ अपनी तुझ बिन कभू न आया
हम आप के न आए जब तक कि तू न आया
साक़ी ने जाम-ए-मय तो शब पै-ब-पै दिया पर
निय्यत भरी न अपनी जब तक सुबू न आया
कोताह है निहायत दस्त-ए-दुआ हमारा
दामन असर का जा कर इक बार छू न आया
आशिक़ को तेरे कल से थी जाँ-कनी की हालत
सब देखने को आए अल्लाह तू न आया
फूँका भी तूर-ओ-वादी बाज़ ऐ 'ख़लीक़' लेकिन
अपनी शरारतों से वो शो'ला-ख़ू न आया
ग़ज़ल
ग़फ़लत में फ़र्क़ अपनी तुझ बिन कभू न आया
मीर मुस्तहसन ख़लीक़