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ग़फ़लत अजब है हम को दम जिस का मारते हैं | शाही शायरी
ghaflat ajab hai hum ko dam jis ka marte hain

ग़ज़ल

ग़फ़लत अजब है हम को दम जिस का मारते हैं

यासीन अली ख़ाँ मरकज़

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ग़फ़लत अजब है हम को दम जिस का मारते हैं
मौजूद है नज़र में जिस को पुकारते हैं

हम आईना हैं हक़ के हक़ आईना है अपना
मस्ती में अपनी हर दम दम हक़ का मारते हैं

हम अपने आप तालिब मतलूब आप हम हैं
इस खेल में हमेशा हम ख़ुद को हारते हैं

जन्नत की हम को ख़्वाहिश दोज़ख़ का डर नहीं है
बे-अस्ल मुफ़्त वाइ'ज़ हम को उभारते हैं

ज़ाहिर है हक़ का जल्वा गर आँख हो तो देखे
'मरकज़' ख़ुदा को आलम भूले पुकारते हैं