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गए मौसमों को भुला देंगे हम | शाही शायरी
gae mausamon ko bhula denge hum

ग़ज़ल

गए मौसमों को भुला देंगे हम

सुहैल अहमद ज़ैदी

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गए मौसमों को भुला देंगे हम
खंडर का दिया भी बुझा देंगे हम

अभी सिर्फ़ चेहरों को पढ़ते रहो
कहानी किसी दिन सुना देंगे हम

दबी आग सुनते हैं बुझती नहीं
तुझे ख़ाक-ए-दिल अब उड़ा देंगे हम

ज़माने हमारा सुख़न पास रख
तुझे और ग़ुर्बत में क्या देंगे हम

मिटे हब्स-ए-जाँ कोई लब तो हिले
उड़ी बात को अब हवा देंगे हम

नज़र हम पे रखता है सहरा 'सुहैल'
ये डर है कहीं गुल खिला देंगे हम