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गए दिनों के फ़साने सुना रही है मुझे | शाही शायरी
gae dinon ke fasane suna rahi hai mujhe

ग़ज़ल

गए दिनों के फ़साने सुना रही है मुझे

नूर बिजनौरी

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गए दिनों के फ़साने सुना रही है मुझे
ये रात और भी पागल बना रही है मुझे

ये धुँदली धुँदली सी परछाइयाँ हैं या ख़िल्क़त
उठाए संग-ए-मलामत डरा रही है मुझे

खुला वो एक दरीचा घने दरख़्तों में
वो सब्ज़-पोश हवा फिर बुला रही है मुझे

मुझे तो चाँद कहीं भी नज़र नहीं आता
कोई किरन सी मगर जगमगा रही है मुझे

महक उठी है अचानक गली गली दिल की
कली कली से तिरी बास आ रही है मुझे

चमन चमन मिरी आवारगी के चर्चे हैं
नगर नगर कोई आँधी उड़ा रही है मुझे

मैं ज़िंदगी की सख़ावत पे काँप उठता हूँ
कि बे-दरेग़ ये ज़ालिम लुटा रही है मुझे