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गाड़ी की खिड़की से देखा शब को उस का शहर | शाही शायरी
gaDi ki khiDki se dekha shab ko us ka shahr

ग़ज़ल

गाड़ी की खिड़की से देखा शब को उस का शहर

ज़ाहिद फ़ारानी

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गाड़ी की खिड़की से देखा शब को उस का शहर
चारों ओर था काला जंगल बीच में उजला शहर

याद न आता क्यूँ गाँव में हम को भी लाहौर
लोग समुंदर-पार न पाएँ इस से अच्छा शहर

सच है हर इक मुल्क ख़ुदा का देस है हर इंसाँ का
लेकिन अपना शहर है यारो आख़िर अपना शहर

ख़्वाब में सुन कर जाग उठता हूँ उन की चीख़-पुकार
उफ़ वो लड़ते मरते बासी उफ़ वो जलता शहर

पोशीदा हैं दिल में उस की यादों के तूफ़ान
दफ़्न हैं एक खंडर की तह में कितने ज़िंदा शहर

मुझ पर इक घनघोर उदासी तुझ पर रंग और नूर
मेरा चेहरा बन है प्यार से तेरा चेहरा शहर

कल की बात है और थकन से अब तक चूर हूँ मैं
उस लड़की का जिस्म था 'ज़ाहिद' ऊँचा-नीचा शहर