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गा रहा हूँ ख़ामुशी में दर्द के नग़्मात मैं | शाही शायरी
ga raha hun KHamushi mein dard ke naghmat main

ग़ज़ल

गा रहा हूँ ख़ामुशी में दर्द के नग़्मात मैं

सय्यद ज़मीर जाफ़री

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गा रहा हूँ ख़ामुशी में दर्द के नग़्मात मैं
बन गया इक साहिल-ए-वीराँ की तन्हा रात मैं

एक दो सज्दे ज़रा शहर-ए-निगाराँ की तरफ़
ऐ ग़म-ए-हस्ती ठहर चलता हूँ तेरे साथ मैं

ज़िंदगी मेरी तमन्नाओं मिरे ख़्वाबों का रूप
फूल मैं हूँ रंग मैं हूँ अब्र मैं बरसात मैं

इक शगुफ़्ता दर्द इक शो'लों में बुझती चाँदनी
अजनबी शहरों से लाया हूँ यही सौग़ात मैं

बारहा इस सादगी पर ख़ुद हँसी आई मुझे
कर रहा हूँ किस ज़माने में वफ़ा की बात मैं

हर उभरती लौ से रौशन हो गया मेरा 'ज़मीर'
बिक गया हर मुस्कुराती रौशनी के हाथ मैं