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फ़ुज़ूल शय हूँ मिरा एहतिराम मत करना | शाही शायरी
fuzul shai hun mera ehtiram mat karna

ग़ज़ल

फ़ुज़ूल शय हूँ मिरा एहतिराम मत करना

फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी

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फ़ुज़ूल शय हूँ मिरा एहतिराम मत करना
फ़क़त दुआ मुझे देना सलाम मत करना

कहीं रुके तो न फिर तुम को रास्ता देगी
ये ज़िंदगी भी सफ़र है क़याम मत करना

वो आश्ना नहीं ख़्वाबों की मा'नविय्यत का
हमारे ख़्वाब अभी उस के नाम मत करना

ज़बान मुँह में है तार-ए-गुनह की सूरत
तुम्हारा हुक्म बजा है कलाम मत करना

मिरा वजूद कि है दाना-ए-क़नाअत सा
मैं इक फ़क़ीर परिंदा हूँ दाम मत करना

ये बात सच है यहाँ गुफ़्तुगू अवाम से है
मगर अदब को गुज़रगाह-ए-आम मत करना

'फ़ज़ा' चराग़-ओ-शफ़क़ दोनों रहज़नों की मताअ'
जो ख़ैर चाहो तो रस्ते में शाम मत करना