फ़ुर्क़त का फ़ुसूँ फैल गया शाम से पहले
अंजाम नज़र आता है अंजाम से पहले
हम जौर-ओ-सितम सह के भी शिकवा नहीं करते
और मोरिद-ए-इल्ज़ाम हैं इल्ज़ाम से पहले
इस वास्ते सीने से लगाया है तिरा ग़म
मिलती नहीं राहत कभी आलाम से पहले
ऐ दोस्त गवारा है मुझे इश्क़ में सब कुछ
कुछ और भी कह लीजिए बदनाम से पहले
तस्लीम है रुस्वाई सबब इस का हुआ कौन
आँखों में नमी आई तिरे नाम से पहले
खो बैठा हूँ सब होश-ओ-ख़िरद एक नज़र में
ऐसा ही ख़ुमार आया मुझे जाम से पहले
दीदार के तालिब थे 'नज़र' हो गए महरूम
दीवार थी अश्कों की दर-ओ-बाम से पहले
ग़ज़ल
फ़ुर्क़त का फ़ुसूँ फैल गया शाम से पहले
नज़र बर्नी