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फ़ुग़ान-ए-रूह कोई किस तरह सुनाए उसे | शाही शायरी
fughan-e-ruh koi kis tarah sunae use

ग़ज़ल

फ़ुग़ान-ए-रूह कोई किस तरह सुनाए उसे

सिद्दीक़ शाहिद

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फ़ुग़ान-ए-रूह कोई किस तरह सुनाए उसे
कि ज़ख़्म ज़ख़्म बदन तो नज़र न आए उसे

न देखने की सज़ा-वार जिस को आँख हुई
कोई पियासा भला हाथ क्या लगाए उसे

सुरूर लज़्ज़त-ए-हासिल का कुछ सिवा होगा
चलन अता का अगर ख़ुसरवाना आए उसे

मिरे लहू में उतर आएँगे नए मौसम
चुनी है दिल में जो दीवार सी वो ढाए उसे

खुला न उस पे कभी मेरी आँख का मंज़र
जमी है आँख में काई कोई दिखाए उसे

वो रौशनी का हवाला वो रंग-ओ-बू का सफ़ीर
मरी जमाल-पसंदी कहीं से लाए उसे

फ़रोग़-ए-हुस्न शगुफ़्त-ए-गुल ओ रम-ए-शबनम
फ़रेब कैसे ये 'शाहिद' कोई सुझाए उसे