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फ़ित्ना-ख़ू ले गई दिल छीन के झट-पट हम से | शाही शायरी
fitna-KHu le gai dil chhin ke jhaT-paT humse

ग़ज़ल

फ़ित्ना-ख़ू ले गई दिल छीन के झट-पट हम से

आशिक़ अकबराबादी

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फ़ित्ना-ख़ू ले गई दिल छीन के झट-पट हम से
और फिर सामने आने में है घुँघट हम से

आप का क़स्द मोहब्बत है अगर ग़ैरों से
क़र्ज़ ले लीजिए थोड़ी सी मोहब्बत हम से

सो गए हम तो हम-आग़ोश हुए ख़्वाब में वो
अब तो करने लगे कुछ कुछ वो लगावट हम से

एक बोसे की तलब में हुई मेहनत बर्बाद
वस्ल की रात हुई यार से खटपट हम से

सुल्ह कर लें तिरे ख़ंजर के गले मिल जाएँ
क़त्ल के वक़्त न रखिए वो रुकावट हम से

हाए किस नाज़ से कहते हैं शब-ए-वस्ल में वो
हो चुकी बात जो होनी थी परे हट हम से