EN اردو
फ़ित्ना-ए-रोज़गार की बातें | शाही शायरी
fitna-e-rozgar ki baaten

ग़ज़ल

फ़ित्ना-ए-रोज़गार की बातें

चंद्रभान कैफ़ी देहल्वी

;

फ़ित्ना-ए-रोज़गार की बातें
ऐसी हैं जैसे यार की बातें

हिज्र में वस्ल-ए-यार की बातें
हैं ख़िज़ाँ में बहार की बातें

लाला-ओ-गुल कै ज़िक्र से बेहतर
एक जान-ए-बहार की बातें

छेड़ के साथ नोक झोक भी है
गुल से होती हैं ख़ार की बातें

सब समझते हैं मैं कहूँ न कहूँ
इस दिल-ए-बे-क़रार की बातें

छेड़ देता हूँ दिल-लगी के लिए
वस्ल में इंतिज़ार की बातें

जो न तुम रूठते तो कर लेते
और दो चार प्यार की बातें

नंग हैं अज़्म-ए-मुस्तक़िल के लिए
दहर-ना-पाएदार की बातें

दिल-नशीं हैं बसंत में 'कैफ़ी'
ये शराब-ओ-ख़ुमार की बातें