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फ़िरऔन-ए-वक़्त कोई भी हो सर-कशी करो | शाही शायरी
firaun-e-waqt koi bhi ho sar-kashi karo

ग़ज़ल

फ़िरऔन-ए-वक़्त कोई भी हो सर-कशी करो

अजमल अजमली

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फ़िरऔन-ए-वक़्त कोई भी हो सर-कशी करो
यारान-ए-शहर मेरी तरह ज़िंदगी करो

अमृत नहीं नसीब तो ज़हराब ही सही
कुछ तो इलाज-ए-शिद्दत-ए-तिश्ना-लबी करो

ये ज़ुल्मत-ए-तमाम मुसलसल नहीं क़ुबूल
दिल का लहू बला से जले रौशनी करो

मुँह देखी दोस्ती से अब उकता गया है दिल
यारो करो ख़ुलूस से गो दुश्मनी करो

हम हर-नफ़स खिलाएँगे अपने लहू से फूल
तुम एहतिमाम-ए-दार-ओ-रसन हर घड़ी करो

हर शे'र आबगीना है मौज-ए-ख़याल का
लो काम एहतियात से जब शाइ'री करो

कलियाँ खिलाने आएगा झोंका नसीम का
तुम राह में हज़ार फ़सीलें खड़ी करो