फ़िराक़ में तो सताती है आरज़ू-ए-विसाल
शब-ए-विसाल में क्यूँ दर्द-ए-दिल दो-चंद हुआ
ख़ुदा ही जाने कि क्या दिल पे चोट लगती है
तुम्हारे पास जो आया वो दर्द-मंद हुआ
न क्यूँकि जान दें इस रश्क से भला अपनी
हमारा आज से जाना वहाँ पे बंद हुआ
ग़ज़ल
फ़िराक़ में तो सताती है आरज़ू-ए-विसाल
निज़ाम रामपुरी