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फ़िराक़ में तो सताती है आरज़ू-ए-विसाल | शाही शायरी
firaq mein to satati hai aarzu-e-visal

ग़ज़ल

फ़िराक़ में तो सताती है आरज़ू-ए-विसाल

निज़ाम रामपुरी

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फ़िराक़ में तो सताती है आरज़ू-ए-विसाल
शब-ए-विसाल में क्यूँ दर्द-ए-दिल दो-चंद हुआ

ख़ुदा ही जाने कि क्या दिल पे चोट लगती है
तुम्हारे पास जो आया वो दर्द-मंद हुआ

न क्यूँकि जान दें इस रश्क से भला अपनी
हमारा आज से जाना वहाँ पे बंद हुआ