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फ़िक्र पाबंदी-ए-हालात से आगे न बढ़ी | शाही शायरी
fikr pabandi-e-haalat se aage na baDhi

ग़ज़ल

फ़िक्र पाबंदी-ए-हालात से आगे न बढ़ी

हमीद नागपुरी

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फ़िक्र पाबंदी-ए-हालात से आगे न बढ़ी
ज़िंदगी क़ैद-ए-मक़ामात से आगे न बढ़ी

हम समझते थे ग़म-ए-दिल का मुदावा होगी
वो नज़र पुर्सिश-ए-हालात से आगे न बढ़ी

उन की ख़ामोशी भी अफ़्साना-दर-अफ़्साना बनी
हम ने जो बात कही बात से आगे न बढ़ी

सरख़ुशी बन न सकी ज़हर-ए-अलम का तिरयाक
ज़िंदगी तल्ख़ी-ए-हालात से आगे न बढ़ी

इश्क़ हर मरहला-ए-ग़म की हदें तोड़ चुका
अक़्ल अंदेशा-ए-हालात से आगे न बढ़ी

ऐसी जन्नत की हवस तुझ को मुबारक ज़ाहिद
जो तिरे हुस्न-ए-ख़यालात से आगे न बढ़ी

निगह-ए-दोस्त में तौक़ीर नहीं उस की हमीद
वो तमन्ना जो मुनाजात से आगे न बढ़ी