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फ़िक्र-ओ-इज़हार में ख़ुद आने लगी पा-मर्दी | शाही शायरी
fikr-o-izhaar mein KHud aane lagi pa-mardi

ग़ज़ल

फ़िक्र-ओ-इज़हार में ख़ुद आने लगी पा-मर्दी

कर्रार नूरी

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फ़िक्र-ओ-इज़हार में ख़ुद आने लगी पा-मर्दी
भूक की आग ने लहजे में तमाज़त भर दी

कुछ तो है ज़ीस्त जो वक़्फ़-ए-मय-ओ-साग़र कर दी
वर्ना किस को है पसंद अपने लिए बेदर्दी

इश्क़-ए-आवारा-ओ-बदनाम ने इज़्ज़त रख ली
हम से बे-घर भी किया करते हैं कूचा-गर्दी

बात तो जब है कि तुम कहने लगो उस को बसंत
गुल-ओ-गुलज़ार पे जो आने लगी है ज़र्दी

आप के जिस्म पे क्या ख़ूब है मौसम का लिबास
हाए जो अलग समझते नहीं गर्मी-सर्दी