फ़िक्र-ए-नौ ज़ौक़-ए-तपाँ से आई है
गर्द थोड़ी कारवाँ से आई है
ज़िंदगी परछाइयाँ अपनी लिए
आइनों के दरमियाँ से आई है
सीख कर जादू वो चश्म-ए-मय-फ़रोश
महफ़िल-ए-जादूगराँ से आई है
रात के अफ़्सूँ जगाते ही रहे
नींद अपनी दास्ताँ से आई है
हो लिए हम ज़िंदगी के साथ साथ
ये नहीं पूछा कहाँ से आई है
दाग़-हा-ए-सीना में ये ताज़गी
इल्तिफ़ात-ए-नागहाँ से आई है
क्या ख़बर तुझ को असीर-ए-नौ-ए-बहार
कितनी रानाई ख़िज़ाँ से आई है
इंक़लाब-ए-नौ में ये क़ुव्वत 'नुशूर'
मेरे दस्त-ए-ना-तवाँ से आई है
ग़ज़ल
फ़िक्र-ए-नौ ज़ौक़-ए-तपाँ से आई है
नुशूर वाहिदी