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फ़िक्र-ए-बेश-ओ-कम नहीं उन की रज़ा के सामने | शाही शायरी
fikr-e-besh-o-kam nahin unki raza ke samne

ग़ज़ल

फ़िक्र-ए-बेश-ओ-कम नहीं उन की रज़ा के सामने

उरूज ज़ैदी बदायूनी

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फ़िक्र-ए-बेश-ओ-कम नहीं उन की रज़ा के सामने
ये मुझे तस्लीम है अर्ज़-ओ-समा के सामने

जो तलब-ना-आश्ना हो मा-सिवा के सामने
हाथ फैलाती है दुनिया उस गदा के सामने

ये कमाल-ए-जज़्ब-ए-दिल मेरी नज़र से दूर था
आप ख़ुद आ जाएँगे पर्दा उठा के सामने

सोचना पड़ता है क्यूँ बेबस हूँ क्यूँ मजबूर हूँ
मैं सर-ए-आग़ाज़-ओ-फ़िक्र-ए-इंतिहा के सामने

वो तो कहिए मेरा दिल आमाज-गाह-ए-शौक़ है
वर्ना कौन आता है तेरे बे-ख़ता के सामने

क्या बताऊँ मेरी ग़र्क़ाबी में किस का हाथ था
नाख़ुदा को पेश होना है ख़ुदा के सामने

टूट जाएगा तिलिस्म-ए-रास्ती-ओ-रहबरी
मैं अगर आईना रख दूँ रहनुमा के सामने

ऐ ज़मीर-ए-ज़िंदा मेरे हर-क़दम पर एहतिसाब
नामा-ए-आमाल जाएगा ख़ुदा के सामने

आँधियाँ उन को बुझा दें आँधियों की क्या मजाल
मैं ने वो शमएँ जलाई हैं हवा के सामने

शिद्दत-ए-एहसास-ए-तौबा का वो आलम है 'उरूज'
जाम मेरे सामने है मैं ख़ुदा के सामने