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फ़िक्र-ए-अहल-ए-हुनर पे बैठी है | शाही शायरी
fikr-e-ahl-e-hunar pe baiThi hai

ग़ज़ल

फ़िक्र-ए-अहल-ए-हुनर पे बैठी है

बद्र वास्ती

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फ़िक्र-ए-अहल-ए-हुनर पे बैठी है
शाइरी सीम-ओ-ज़र पे बैठी है

पहले हाथों में हाथ रहता था
ज़िंदगी अब कमर पे बैठी है

सहमी सहमी हुई सी हर ख़्वाहिश
दिल-ए-वहशत-असर पे बैठी है

फूल काँटों के बीच रहते हैं
ख़ुश्बू तितली के पर पे बैठी है

आस्तीनें टटोल कर देखो
दोस्ती किस डगर पे बैठी है