फ़िक्र-ए-अहल-ए-हुनर पे बैठी है
शाइरी सीम-ओ-ज़र पे बैठी है
पहले हाथों में हाथ रहता था
ज़िंदगी अब कमर पे बैठी है
सहमी सहमी हुई सी हर ख़्वाहिश
दिल-ए-वहशत-असर पे बैठी है
फूल काँटों के बीच रहते हैं
ख़ुश्बू तितली के पर पे बैठी है
आस्तीनें टटोल कर देखो
दोस्ती किस डगर पे बैठी है
ग़ज़ल
फ़िक्र-ए-अहल-ए-हुनर पे बैठी है
बद्र वास्ती