EN اردو
फ़िदा-ए-दिलबर-ए-रंगीं-अदा हूँ | शाही शायरी
fida-e-dilbar-e-rangin-ada hun

ग़ज़ल

फ़िदा-ए-दिलबर-ए-रंगीं-अदा हूँ

वली मोहम्मद वली

;

फ़िदा-ए-दिलबर-ए-रंगीं-अदा हूँ
शहीद-ए-शाहिद-ए-गुल-गूँ-क़बा हूँ

हर इक मह-रू के मिलने का नहीं ज़ौक़
सुख़न के आश्ना का आश्ना हूँ

किया हूँ तर्क नर्गिस का तमाशा
तलबगार-ए-निगाह-ए-बा-हया हूँ

न कर शमशाद की तारीफ़ मुझ पास
कि मैं उस सर्व-क़द का मुब्तला हूँ

किया मैं अर्ज़ उस ख़ुर्शीद-रू सूँ
तू शाह-ए-हुस्न मैं तेरा गदा हूँ

सदा रखता हूँ शौक़ उस के सुख़न का
हमेशा तिश्ना-ए-आब-ए-बक़ा हूँ

क़दम पर उस के रखता हूँ सदा सर
'वली' हम-मशरब-ए-रंग-ए-हिना हूँ