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फ़ज़ा-ए-सेहन-ए-गुलिस्ताँ है सोगवार अभी | शाही शायरी
faza-e-sehn-e-gulstan hai sogwar abhi

ग़ज़ल

फ़ज़ा-ए-सेहन-ए-गुलिस्ताँ है सोगवार अभी

शरीफ़ कुंजाही

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फ़ज़ा-ए-सेहन-ए-गुलिस्ताँ है सोगवार अभी
ख़िज़ाँ की क़ैद में है यूसुफ़-ए-बहार अभी

अभी चमन पे चमन का गुमाँ नहीं होता
क़बा-ए-ग़ुंचा को होना है तार तार अभी

अभी है ख़ंदा-ए-गुल भी अगर तो ज़ेर-लबी
रुका रुका सा है कुछ नग़्मा-ए-हज़ार अभी

चमन तो ख़ैर चमन है नवा-गरों को नहीं
ख़ुद अपनी शाख़-ए-नशेमन पे इख़्तियार अभी

अभी उमीद की सरसों कहीं न फूली
बसंत का है ज़माने को इंतिज़ार अभी

तही-सुबूई किसी की ये कह रही है 'शरीफ़'
निज़ाम-ए-मय-कदा बदलेगा एक बार अभी