फ़ज़ा-ए-सेहन-ए-गुलिस्ताँ है सोगवार अभी
ख़िज़ाँ की क़ैद में है यूसुफ़-ए-बहार अभी
अभी चमन पे चमन का गुमाँ नहीं होता
क़बा-ए-ग़ुंचा को होना है तार तार अभी
अभी है ख़ंदा-ए-गुल भी अगर तो ज़ेर-लबी
रुका रुका सा है कुछ नग़्मा-ए-हज़ार अभी
चमन तो ख़ैर चमन है नवा-गरों को नहीं
ख़ुद अपनी शाख़-ए-नशेमन पे इख़्तियार अभी
अभी उमीद की सरसों कहीं न फूली
बसंत का है ज़माने को इंतिज़ार अभी
तही-सुबूई किसी की ये कह रही है 'शरीफ़'
निज़ाम-ए-मय-कदा बदलेगा एक बार अभी
ग़ज़ल
फ़ज़ा-ए-सेहन-ए-गुलिस्ताँ है सोगवार अभी
शरीफ़ कुंजाही