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फ़ज़ा-ए-आलम-ए-क़ुदसी में है नश्व-ओ-नुमा मेरी | शाही शायरी
faza-e-alam-e-qudsi mein hai nashw-o-numa meri

ग़ज़ल

फ़ज़ा-ए-आलम-ए-क़ुदसी में है नश्व-ओ-नुमा मेरी

साहिर देहल्वी

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फ़ज़ा-ए-आलम-ए-क़ुदसी में है नश्व-ओ-नुमा मेरी
मुकाफ़ात-ए-अमल से दूर है बीम-ओ-रजा मेरी

शरीअ'त है अज़ल से मोहर-ए-पैमान-ए-वफ़ा मेरी
तरीक़त ख़ातिम-ए-एहराम-ए-तस्लीम-ओ-रज़ा मेरी

हक़ीक़त है सवाद-ए-ख़ातिर-ए-बे-मुद्दआ' मेरी
हरीम-ए-मा'रिफ़त-दा' मा-कदर ख़ुद ना-सफ़ा मेरी

तिरी ज़ात-ए-मुक़द्दस है मुबर्रा शिर्क-ए-ग़ैरी से
कि नूर-ए-ज़ात में साया-सिफ़त हस्ती है ला मेरी

जमाल-ए-ला-यज़ाली शश-जिहत से रूनुमा देखा
बनी आईना-दार-ए-हुस्न चश्म-ए-हक़-नुमा मेरी

किसी का हुस्न तूर-अफ़रोज़ महव-ए-लन-तरानी है
दलील नीस्ती है हस्ती-ए-इश्क़-ओ-फ़ना मेरी

शुहूद-ए-हक़ है मा-बैन-ए-ग़ुयूब इक जल्वा-ए-क़ुदरत
हयात-ए-जाविदाँ है इब्तिदा और इंतिहा मेरी

अज़ल से महव-ए-दीदार-ए-जमाल-ए-जल्वा-आरा हूँ
नज़र बिल-ग़ैर हो गर हो नज़र में मा-सिवा मेरी

हदीस-ए-इश्क़ बाला-तर है हर्फ़-ओ-सौत से 'साहिर'
कहाँ मैं और कहाँ तक़दीर-ए-फ़िक्र-ए-ना-रसा मेरी