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फ़स्ल-ए-ख़िज़ाँ में शाख़ से पत्ता निकाल दे | शाही शायरी
fasl-e-KHizan mein shaKH se patta nikal de

ग़ज़ल

फ़स्ल-ए-ख़िज़ाँ में शाख़ से पत्ता निकाल दे

सलीम फ़िगार

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फ़स्ल-ए-ख़िज़ाँ में शाख़ से पत्ता निकाल दे
सूखे शजर से खींच के साया निकाल दे

मुझ को अमाँ हो क़र्या-ए-वहम-ओ-गुमान में
दे कर यक़ीन दिल से तू ख़दशा निकाल दे

चाहे शरर से फूँक दे सारे जहान को
चाहे जिसे वो आग से ज़िंदा निकाल दे

रहबर नहीं है उस सा कोई दो जहान में
बहर-ए-रवाँ को काट कर रस्ता निकाल दे

बे-जान पत्थरों से करे ज़िंदगी कशीद
दीवार-ए-ख़िश्त-ओ-संग से पौदा निकाल दे