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फ़स्ल-ए-गुल कुछ भी नहीं बाद-ए-सबा कुछ भी नहीं | शाही शायरी
fasl-e-gul kuchh bhi nahin baad-e-saba kuchh bhi nahin

ग़ज़ल

फ़स्ल-ए-गुल कुछ भी नहीं बाद-ए-सबा कुछ भी नहीं

मसूदा हयात

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फ़स्ल-ए-गुल कुछ भी नहीं बाद-ए-सबा कुछ भी नहीं
तेरी महफ़िल हो तो जन्नत की फ़ज़ा कुछ भी नहीं

जान-ओ-दिल कर दिए हम ने तिरी राहों में निसार
और हमारे लिए तोहमत के सिवा कुछ भी नहीं

पकड़े जाएँगे हमीं हश्र में बे-जुर्म-ओ-क़सूर
और गुनाहगार को दुनिया में सज़ा कुछ भी नहीं

उन के दिल पर मिरा एहसास-ए-सितम भी है गराँ
ग़ैर की शो'ला-बयानी का गिला कुछ भी नहीं

जाम-ए-जम हो कहीं गर्दिश में मगर फिर भी 'हयात'
चश्म-ए-साक़ी से न छिलके तो मज़ा कुछ भी नहीं