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फ़स्ल ऐसी है उल्फ़त के दामन तले | शाही शायरी
fasl aisi hai ulfat ke daman tale

ग़ज़ल

फ़स्ल ऐसी है उल्फ़त के दामन तले

साहिर लखनवी

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फ़स्ल ऐसी है उल्फ़त के दामन तले
हम जलें तुम जलो सारी दुनिया जले

तप के कुंदन की मानिंद निखरा जुनूँ
जिस क़दर ग़म बढ़ा बढ़ गए हौसले

दिल में फैली है यूँ रौशनी याद की
जैसे वीरान मंदिर में दीपक जले

जश्न से मेरी बर्बादियों का चलो
दोस्तो आओ शीशे में शो'ला ढले

हर-नफ़स जैसे जीने की ता'ज़ीर है
कितने दुश्वार हैं उम्र के मरहले

हम उलझते रहे फ़लसफ़ी की तरह
और बढ़ते गए वक़्त के मसअले

मोड़ सकते हैं दुनिया का रुख़ आज ही
आप से कुछ हसीं हम से कुछ मनचले

वक़्त मुझ से मिरा हाफ़िज़ा छीन ले
आग में कोई यादों की कब तक चले

ख़ंदा-ए-गुल से 'साहिर' न बहलेंगे हम
ताज़ा-दम में जुनूँ के अभी वलवले