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फ़सील-ए-शब पे तारों ने लिखा क्या | शाही शायरी
fasil-e-shab pe taron ne likha kya

ग़ज़ल

फ़सील-ए-शब पे तारों ने लिखा क्या

विकास शर्मा राज़

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फ़सील-ए-शब पे तारों ने लिखा क्या
मैं महव-ए-ख़्वाब था तुम ने पढ़ा क्या

फ़ज़ा में घुल गए हैं रंग कितने
ज़रा सी धूप से बादल खुला क्या

हवाओं को उलझने से है मतलब
मिरी ज़ंजीर क्या तेरी रिदा क्या

चराग़ इक दूसरे से पूछते हैं
सभी हो जाएँगे रिज़्क़-ए-हवा क्या

बदन में क़ैद हो कर रह गई है
हमारी रूह का था मुद्दआ क्या

जिसे भी देखिए वो नींद में है
हमारे शहर को आख़िर हुआ क्या