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फ़सील-ए-रेग पर इतना भरोसा कर लिया तुम ने | शाही शायरी
fasil-e-reg par itna bharosa kar liya tumne

ग़ज़ल

फ़सील-ए-रेग पर इतना भरोसा कर लिया तुम ने

वली मदनी

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फ़सील-ए-रेग पर इतना भरोसा कर लिया तुम ने
छतें भी डाल दीं और वा दरीचा कर लिया तुम ने

तअ'ज्जुब है इबादत में भी ऐसा कर लिया तुम ने
नहीं दिल को झुकाया और सज्दा कर लिया तुम ने

कभी माना शरीअ'त की कभी इस से रहे आजिज़
मगर दावा कि दिल अल्लाह वाला कर लिया तुम ने

मोहब्बत प्यार हमदर्दी सभी को रख दिया गिरवी
हुसूल-ए-ऐश की ख़ातिर जो चाहा कर लिया तुम ने

समेटा ज़िंदगी भर काली गोरी जेब की रौनक़
ढला जब उम्र का सूरज तो तौबा कर लिया तुम ने

तहारत की तमन्ना है न दिल में हक़-पसंदी है
मगर मासूम चेहरा और लबादा कर लिया तुम ने

गराँ-माया अमानत थी उसे महफ़ूज़ रखना था
'वली' पाकीज़ा तहज़ीबों का सौदा कर लिया तुम ने