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फ़सील-ए-ख़्वाब पे सीढ़ी लगाने वाला हूँ | शाही शायरी
fasil-e-KHwab pe siDhi lagane wala hun

ग़ज़ल

फ़सील-ए-ख़्वाब पे सीढ़ी लगाने वाला हूँ

सलमान सरवत

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फ़सील-ए-ख़्वाब पे सीढ़ी लगाने वाला हूँ
मैं एक राज़ से पर्दा उठाने वाला हूँ

तख़य्युलात के दाने बिखेर कर हर-सू
ज़मीन-ए-अक़्ल पे हैरत उगाने वाला हूँ

मिरी नज़र में ये जीवन है जल-परी जैसा
मैं शोख़ रंग के सागर दिखाने वाला हूँ

गुमाँ की हद से भी आगे पड़ाव डाला है
बहुत रुका तो फ़क़त शब बताने वाला हूँ

मैं आइनों को तअ'ज्जुब में डाल कर इक दिन
तमाम अक्स नज़र से चुराने वाला हूँ

मैं हो गया हूँ बहुत मुतमइन सुहूलत में
सो मुश्किलात में ख़ुद को फँसाने वाला हूँ

फ़साने ख़ूब गढ़े हैं बिना कहानी के
ग़ज़ल भी इश्क़ से बाला सुनाने वाला हूँ