फ़साद-ए-क़ल्ब-ओ-नज़र हासिल-ए-तमाशा देख 
सवार-ए-मरकब-ए-दुनिया ग़ुबार-ए-दुनिया देख 
तमाम कार-ए-अजल है नुमूद-ए-पस्त-ओ-फ़राज़ 
नविश्ता-ए-सर-ए-कोहसार-ओ-बाग़-ओ-दरिया देख 
हर इम्तिहाँ है नए सानेहे का पस-मंज़र 
दिखाई कुछ नहीं देता तो राह-ए-फ़र्दा देख 
वो अपनी तेग़ से ख़ुद ही लहूलुहान हुआ 
मिरे बदन पे तो हर ज़ख़्म है उसी का देख 
अजब नहीं कि हो दीवार नुक़्ता-ए-मौहूम 
मकान हो कि मकीं दो दिलों का मिलना देख 
जो हो सके निगह-ए-ऐब-जू उतार के फेंक 
कमाल-ए-हैरत-ओ-फ़ितरत जमाल-ए-ज़ेबा देख 
कभी कभी निगह-ए-सर्द हो ख़ुमार-आलूद 
कभी कभी दिल-ए-बे-मेहर को तड़पता देख 
कभी कभी सही उड़ जाए होश का दामन 
कभी कभी तो ये कैफ़िय्यत-ए-नज़ारा देख 
ख़याल दिल से नज़र है ख़याल से नाज़ुक 
ज़रा सँभाल के गुलदस्ता-ए-तमन्ना देख 
ये वाक़िआ है कि ख़ुशबू-ए-मुश्क आती है 
बला-ए-जाँ सर-ए-बाज़ार मुझ को रुस्वा देख
        ग़ज़ल
फ़साद-ए-क़ल्ब-ओ-नज़र हासिल-ए-तमाशा देख
सय्यद अमीन अशरफ़

