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फ़रोग़-ए-दीदा-वरी का ज़माना आया है | शाही शायरी
farogh-e-dida-wari ka zamana aaya hai

ग़ज़ल

फ़रोग़-ए-दीदा-वरी का ज़माना आया है

हुरमतुल इकराम

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फ़रोग़-ए-दीदा-वरी का ज़माना आया है
दिलों की बे-ख़बरी का ज़माना आया है

ख़िरद से कह दो कि तन्हा न कट सकेगी ये राह
जुनूँ की हम-सफ़री का ज़माना आया है

पहनाओ लाला-ओ-नस्रीं को ताज काँटों का
तिलिस्म-ए-ख़ुश-नज़री का ज़माना आया है

नवेद दी है ये महरूमी-ए-मोहब्बत ने
दुआ की बे-असरी का ज़माना आया है

निखार आने लगा फिर ख़राबा-ए-जाँ पर
ये किस की जल्वागरी का ज़माना आया है

कहो सबा से ये वारफ़्ता-हालियाँ छोड़े
शुऊ'र-ए-नामा-बरी का ज़माना आया है

कहाँ वो दौर कि यक-गूना बे-ख़ुदी माँगें
सुरूर-ख़ुद-निगरी का ज़माना आया है

बहार लाई है अब के पयाम और ही कुछ
दिलों की बख़िया-गिरी का ज़माना आया है

सुकूत-ए-नीम-शबी से गुज़र चलो 'हुर्मत'
कि नाला-ए-सहरी का ज़माना आया है