फ़रियाद सदा-ए-नफ़स आवाज़-ए-जरस है
क्या क़ाफ़िला-ए-उम्र कूँ चलने का हवस है
जो साफ़-दिल है उस में कुदूरत का असर नीं
हर-चंद अगर दुश्मन-ए-आईना नफ़स है
लेता हूँ अपस मदरसा-ए-दिल में सबक़ मैं
उस शोख़ मुदर्रिस का वहाँ जब सूँ दरस है
यक लम्हा न हो मुझ सूँ जुदा ऐ मह-ए-ताबाँ
हर आन तिरे हिज्र का मुझ हक़ में बरस है
'दाऊद' न कर पुर्सिश-ए-महशर सती कुछ ख़ौफ़
वाँ आल-ए-मोहम्मद की शफ़ाअत तुझे बस है
ग़ज़ल
फ़रियाद सदा-ए-नफ़स आवाज़-ए-जरस है
दाऊद औरंगाबादी