EN اردو
फ़रेब-ए-हुस्न नज़र का दिखाई देता है | शाही शायरी
fareb-e-husn nazar ka dikhai deta hai

ग़ज़ल

फ़रेब-ए-हुस्न नज़र का दिखाई देता है

मुख़तार शमीम

;

फ़रेब-ए-हुस्न नज़र का दिखाई देता है
हमें हर एक जो अच्छा दिखाई देता है

शुऊर-ए-ग़म के दरीचे तो वा करो यारो
फ़सील-ए-शब पे उजाला दिखाई देता है

यहाँ सब अपनी सलीबें उठाए फिरते हैं
हर एक शख़्स मसीहा दिखाई देता है

हमारे दर्द को पढ़ लो खुली किताब हैं हम
हर एक चेहरा ये कहता दिखाई देता है

'शमीम' आइए फ़िक्र-ए-सुख़न-शिआ'र करें
यही फ़रार का रस्ता दिखाई देता है