फ़राज़-ए-इश्क़ तेरी इंतिहा नहीं हुए हम
किसी पे क़र्ज़ थे लेकिन अदा नहीं हुए हम
तेरी गली के सिवा और क्या ठिकाना है
यहीं मिलेंगे अगर लापता नहीं हम
तुम्हारे बा'द बड़ा फ़र्क़ आ गया हम में
तुम्हारे बा'द किसी पर ख़फ़ा नहीं हुए हम
तअ'ल्लुक़ात में शर्तें कभी नहीं रक्खीं
कभी किसी के लिए मसअला नहीं हुए हम
अभी हमारी मोहब्बत नहीं खुली तुम पर
अभी तुम्हारे मरज़ की दवा नहीं हुए हम
ग़ज़ल
फ़राज़-ए-इश्क़ तेरी इंतिहा नहीं हुए हम
शकील जमाली