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फ़रार के लिए जब रास्ता नहीं होगा | शाही शायरी
farar ke liye jab rasta nahin hoga

ग़ज़ल

फ़रार के लिए जब रास्ता नहीं होगा

अतीक़ुल्लाह

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फ़रार के लिए जब रास्ता नहीं होगा
तो बाब-ए-ख़्वाब भी क्या कोई वा नहीं होगा

इक ऐसे शहर में कुछ दिन ठहर के देखा जाए
जहाँ किसी को कोई जानता नहीं होगा

वो बात थी तो कई दूसरे सबब भी थे
ये बात है तो सबब दूसरा नहीं होगा

यूँ इस निगाह को अपनी कुशादा रखते हैं
कि इस के बाद कभी देखना नहीं होगा

जो तंग होते गए क़ल्ब-हा-ए-सीना-मक़ाम
कोई मक़ाम मक़ाम-ए-दुआ नहीं होगा

कोई ज़मीन तो होगी तिरी ज़मीनों पर
हमारे जैसा कोई नक़्श-ए-पा नहीं होगा